बद्रीनाथ(Badrinath)
Uttarakhand
July 2019
परिचय
ज्यादातर लोग बद्रीनाथ की यात्रा करने से पहले गंगोत्री यमुनोत्री और केदारनाथ
की यात्रा करना शुभ मानते इसके बाद बद्रीनाथ की यात्रा।
बद्रीनाथ में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है
इसके अलावा जहां अलकनंदा नदी का उद्गम स्थल है। अलकनंदा नदी बद्रीनाथ से निकल कर
देवप्रयाग में भागीरथी नदी मैं मिल जाती है गंगा नदी का स्वरूप लेती है। सर्दियों
में बद्रीनाथ धाम बर्फ से ढका हुआ रहता है। इसलिए सर्दियों में बद्रीनाथ की पूजा
जोशीमठ में की जाती है। गर्मी के समय में बद्रीनाथ के कपाट पूरी विधि विधान से खोल
दिए जाते हैं और आम जनता यहां दर्शन करती है।
Introduction
Most people consider it
auspicious to visit Gangotri Yamunotri and Kedarnath before traveling to
Badrinath and then to Badrinath.
Lord
Vishnu is worshiped at Badrinath apart from where the river Alaknanda
originates. The Alaknanda River originates from the Badrinath and joins the
Bhagirathi River at Devprayag to form the Ganges River. In winter, Badrinath
Dham is covered with snow. So in winter, Badrinath is worshiped in Joshimath.
In summer, the doors of Badrinath are completely opened by law and the general
public visits here.
badrinath |
बद्रीनाथ जाने के लिए हरिद्वार से सुबह सुबह बस
मिल जाती हैं बद्रीनाथ जाने के लिए केवल सड़क मार्ग ही उपलब्ध है। हरिद्वार से
बद्रीनाथ जाने वाली बस में हमारी टिकिट बुक थी। हम आज(अगले दिन) सुबह बस से
बद्रीनाथ के लिए निकल गए। सुबह का वक्त है मौसम ठंडा है।
Buses are available
from Haridwar in the morning to reach Badrinath. Only road is available to
reach Badrinath. We had our ticket book in the bus going from Haridwar to
Badrinath. We left for Badrinath by bus today (next day). The weather is cold
in the morning.
हरिद्वार से आगे रास्ते में 20 किलोमीटर दूर ऋषिकेश आता है जहां पहली बार
गंगा नदी पहाड़ों से उतर कर जमीन पर बहती है।
ऋषिकेश से पहाड़ी रास्ते प्रारंभ हो जाते हैं यहां घुमावदार रास्ते हैं।
ऋषिकेश कुछ दूरी पर 75 किलोमीटर दूर
देवप्रयाग आता है जहां पर भागीरथी और अलकनंदा नदी का सुंदर संगम होता है यहां से
गंगा नदी का स्वरूप लेती है। यहां से कुछ दूरी पर आगे जाने पर रुद्रप्रयाग आता है जहा
पर अलकनंदा और मंदाकिनी जो कि केदारनाथ से निकल कर आती है। यहां एक रास्ता
गौरीकुंड होते हुए केदारनाथ के लिए जाता है तथा यहां से दूसरा रास्ता जोशीमठ होते
हुए बद्रीनाथ के लिए जाता है। यहां से अभी जाने पर जोशीमठ होता है जिसको ज्योतिर
मठ देखा जाता है। जोशीमठ में आदि शंकराचार्य ने मठ की स्थापना की। यहां पर नरसिंह
मंदिर है इसी में बद्रीनाथ की पूजा की जाती है शीतकाल में।
On the way ahead from
Haridwar comes Rishikesh, 20 km, where for the
first time the river Ganga flows down from the mountains and lands. The hill
routes start from Rishikesh. There are winding paths here. Rishikesh comes to
Devprayag some 75 kilometers away, where
there is a beautiful confluence of the Bhagirathi and the Alaknanda River, from
where the Ganges takes the form of the river. After going some distance from
here, Rudraprayag comes where Alaknanda and Mandakini come out of Kedarnath.
Here one route leads to Kedarnath via Gaurikund and the other way from here to
Badrinath via Joshimath. When you go from here, there is Joshimath, which is
seen as Jyotir Math. Adi Shankaracharya established the monastery in Joshimath.
There is a Narasimha temple here, in which Badrinath is worshiped in winter.
जोशीमठ से बद्रीनाथ जाने के लिए बहुत सकरा
रास्ता है जिस पर दो वाहन एक साथ नहीं जा सकते हैं इसलिए यहां से बद्रीनाथ जाने के
लिए कुछ समय के अंतराल में जान एवं आने के लिए गाड़ियों को रवाना किया जाता है।
जोशीमठ में ठहरने के लिए बहुत सारी धर्मशाला एवं होटल बनी हुई है। यहां से आगे की
तरफ आने पर एक रास्ता फूलों की घाटी आती है। यहां से आगे बद्रीनाथ धाम आ जाता है।
यहां रुकने के लिए अच्छी व्यवस्था है खाने पीने के लिए अच्छी व्यवस्था है यहां पर
हर तरह का शाकाहारी भोजन मिलता है। वैसे यह मंदिर दो पहाड़ों के बीच बना हुआ है।
इन दोनों पहाड़ों को नार एवं नारी नाम से जाना जाता है। बद्रीनाथ अलकनंदा नदी के
तट पर स्थित है यहां पर एक गर्म कुंड है। जहां से यात्री स्नान कर दर्शन करते हैं। दर्शन करने के लिए मंदिर खोल
दिया जाता है तथा 1:00 बजे से 4:00 बजे तक मंदिर बंद रहता है 4:00 बजे बाद पुनः खोल दिया जाता है। रात्रि काल
में 8:00 बजे पूजा होती है इसके
बाद मंदिर में दर्शन के लिए बंद कर दिया जाता है।
To reach
Badrinath from Joshimath, there is a very difficult way on which two vehicles
cannot go together, hence trains are sent to go to Badrinath from here to come
and die in a period of time. There is a lot of Dharamshala and hotel for
staying in Joshimath. On coming further from here, one way comes to the Valley
of Flowers. Badrinath Dham comes from here. There is a good arrangement to stop
here, there is a good arrangement for eating and drinking, every kind of
vegetarian food is available here. By the way, this temple is situated between
two mountains. Both these mountains are known as Nar and Nari. Badrinath is
situated on the banks of the Alaknanda River and has a hot tank. From where the
passengers take bath and have darshan. The temple is opened for darshan and the
temple is closed from 1:00 pm to 4:00 pm and reopens after 4:00 pm. The worship
takes place at 8:00 pm during the night, after which the temple is closed for
darshan.
यहां से कुछ दूरी पर भारत की सीमा का अंतिम
गांव माना गांव स्थित है यहां पर भीम द्वारा एक ही पत्थर से बनाया गया पुल है
इसलिए इसे भीमपुल कहते हैं। भीम पुल के पास एक गुफा है जिसमें एक साधु तपस्या कर
रहा है कई वर्षों से। इन्हें बर्फानी बाबा कहां जाता है।
At some
distance from here, Mana village, the last village on the border of India, is
located here, there is a bridge made by Bhima with a single stone, hence it is
called Bhimpul. There is a cave near Bhima bridge in which a monk has been
doing penance for many years. Where does he go to Barfani Baba.
Badrinath |
बद्रीनाथ से जुडी पौराणिक
कथाए
Mythological stories related to
Badrinath
1. यही वह स्थान है जहां श्री हरि नें नर-नारायण
रूप में तपस्या की थी| भगवान शिव का बद्रीनाथ धाम था| कालांतर में यहां
श्री हरि का स्थान हो गया|
बद्रीनाथ धाम बहुत ही प्रसिद्ध तीर्थस्थल है।
कहा जाता है की यह दूसरा बैकुंठ धाम है। धर्म ग्रंथों के अनुसार यही वह जगह है
जहां भगवान विष्णु सतयुग में देवताओं और मनुष्यों को साक्षात दर्शन देते थे। इस
जगह की हर युग में कुछ ना कुछ कहानी जरुर है। पुराणों के अनुसार बताया जाता है की
बद्रीनाथ में द्वापर युग से भगवान विष्णु के विग्रह दर्शन भक्तों को होने लगे। एक
कथा में बदरीनाथ को लेकर यह कथा भी प्रचलित है की यही वह स्थान है जहां श्री हरि
नें नर-नारायण रूप में तपस्या की थी। बद्रीनाथ धाम को लेकर कई रोचक कहानियां
प्रचलित हैं, तो आइए जानते हैं
वे बातें....
1. This is the place where Shri Hari did penance in the form
of Nar-Narayan. Badrinath was the abode of Lord Shiva. Later, Shri Hari became
the place here.
Badrinath
Dham is a very famous pilgrimage center. It is said that this is the second
Baikunth Dham. According to religious texts, this is the place where Lord
Vishnu used to give visions to Gods and humans in Satyuga. There is definitely
some story in every era of this place. According to the Puranas, it is said
that the devotees of Lord Vishnu appeared in Badrinath from Dwapar era. There
is also a legend about Badrinath in a story that this is the place where Shri
Hari did penance in the form of Nar-Narayan. There are many interesting stories
about Badrinath Dham, so let's know those things ...
2. यहां देवी लक्ष्मी का स्वरूप है बदरी
एक बार देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु एक दूसरे
से नाराज हो गए। इसके बाद देवी लक्ष्मी अपने पिता समुद्र के घर चली गईं और भगवान
विष्णु भी आहत होकर नर-नारायण पर्वत के बीच तपस्या करने चले गए। फिर कई सालों बाद
देवी लक्ष्मी को अपनी भूल का ज्ञान हुआ, तो वे भगवान विष्णु को ढ़ूंढ़ने लगीं। इन्होंने देखा कि नारायण बर्फ से ढ़के
पर्वतों के बीच बैठे तप कर रहे हैं और उन पर बर्फ गिर रही है। देवी लक्ष्मी यह सब
देखकर बहुत दुखी हुईं और वे बदरी यानी बेड़ का पेड़ बन गईं ताकी तप में लीन भगवान
विष्णु पर बर्फ ना गिरे। वहीं जब भगवान विष्णु का तप पूर्ण हुआ तो उन्होंने देवी
लक्ष्मी को बेड़ के वृक्ष के रूप में देखा। इससे भगवान विष्णु बहुत प्रसन्न हुए और
उन्होनें कहा की इस स्थान को बद्रीनाथ धाम से जाना जाएगा। तब से अब तक उस स्थान को
बद्रीनाथ धाम के नाम से जाना जाता है और यही तीर्थ बदरी नारायण से भी जाना जाता है
और यहां बदरी देवी लक्ष्मी का स्वरूप है।
2. Badri is the form of Goddess Lakshmi
Once Goddess Lakshmi
and Lord Vishnu became angry with each other. After this, Goddess Lakshmi went
to the house of her father Samudra and Lord Vishnu also went to austerities in
the midst of Nar-Narayan mountain. Then after many years, Goddess Lakshmi came
to know about her mistake, then she started looking for Lord Vishnu. He saw
that Narayan is meditating sitting in the snow covered mountains and snow is
falling on him. Goddess Lakshmi was very sad to see all this and she became
Badri i.e. a fleet tree so that the snow could not fall on Lord Vishnu absorbed
in meditation. At the same time, when the tenacity of Lord Vishnu was
completed, he saw Goddess Lakshmi as a tree of fleas. Lord Vishnu was very
pleased with this and he said that this place will be known from Badrinath
Dham. Since then, the place is known as Badrinath Dham and this shrine is also
known by Badri Narayan and Badri is the form of Goddess Lakshmi.
3. शिव भूमि हो गई श्री हरि की भूमि
बद्रीनाथ को लेकर पौराणिक कथाओं में एक कथा यह
भी प्रचलित है, कि बदरीनाथ धाम
में शिवजी सपरिवार निवास करते थे। परंतु एक बार जब भगवान विष्णु तपस्या के लिए कोई
स्थान ढ़ूढ रहे थे तो अचानक उन्हें यह स्थान दिखा और उन्हें यह स्थान बेहद पसंद आ
गया। श्री हरि यह जानते थे की यह जगह उनके आराध्य भगवान शिव का निवास स्थान है।
इसलिए उन्होंने एक युक्ति निकाली और शिवजी से उनका धाम मांग लिया। भगवान शिव ने
विष्णु जी को यह स्थान दे दिया और तब से विष्णु जी यहां निवास करने लगे। बस तभी से
यह शिव भूमि श्री हरि की भूमि बदरीनाथ धाम के नाम से जानी जाने लगी।
3. Shiva land becomes Shri Hari's land
There is
also a legend in mythology about Badrinath, that Shiva lived in the Badrinath
Dham family. But once Lord Vishnu was looking for a place for penance, suddenly
he saw this place and he liked this place very much. Shri Hari knew that this
place is the abode of his adorable Lord Shiva. So he took out a tactic and
asked Shiva for his abode. Lord Shiva gave this place to Vishnu and since then
Vishnu started living here. Just then, this Shiva land came to be known as
Badrinath Dham, the land of Shri Hari.
4. नर-नारायण ने की थी तपस्या
बदरीनाथ धाम को लेकर एक और कथा मिलती है कि
धर्म के दो पुत्र थे नर और नारायण। ये दोनों ही धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए अपना
आश्रम स्थापित करना चाहते थे और इसके लिए पवित्र स्थान की तलाश में थे। उन्हें
इस स्थान की प्राप्ति हुई और उन्होंने इस जगह का नाम बदरी विशाल रख दिया।
बद्रीनाथ दो पहाड़ियों के बीच स्थित है। एक पर भगवान नारायण ने तपस्या की थी जबकि
दूसरे पर नर ने। नारायण ने द्वापर युग में श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया,
वहीं नर नें अर्जुन के रुप में अवतार लिया था।
4. Nara-Narayan did penance
Another
legend is found about Badrinath Dham that Dharma had two sons, Nara and
Narayan. Both of them wanted to establish their ashram for the propagation of
religion and for this they were looking for a holy place. He received this
establishment and he named this place Badri Vishal. Badrinath is situated
between two hills. Lord Narayana did penance on one, while on the other man.
Narayan incarnated as Shri Krishna in the Dwapara era, while the male
incarnated as Arjuna.
5. पांडवों ने यहीं किया था पिंडदान
मान्यताओं के अनुसार बदरीनाथ धाम में ही
पांडवों ने अपने पितरों का पिंडदान किया था। यही वजह है कि आज भी बदरीनाथ के
ब्रह्मकपाल क्षेत्र में लोग दूर-दूर से अपने पितरों का पिंडदान करने आते हैं। कहा
जाता है कि बदरीनाथ के दर्शन ही नहीं बल्कि स्मरण मात्र से ही मनुष्य का कल्याण
हो जाता है। कथा यह भी है कि यहीं पर भगवान शिव को बह्मकपाल के पास बह्महत्या के
पाप से मुक्ति मिली थी।
5. Pandavas did pindadan here
According
to the beliefs, the Pandavas offered their ancestors in Badrinath Dham. This is
the reason that even today people come from far and wide in Brahmakpal area of
Badrinath to offer their ancestors. It is said that not only the vision of
Badrinath, but also the memory of man becomes good. There is also a story that
here Lord Shiva got liberation from the sin of Bahmukal near Bahmakpal.